
जीवन परिचय
वास्तविक नाम | मोहम्मद रफ़ी |
उपनाम | फ़ीको |
व्यवसाय | पार्श्व गायक |
शारीरिक संरचना | |
लम्बाई (लगभग) | से० मी०- 170 मी०- 1.70 फीट इन्च- 5’ 7” |
वजन/भार (लगभग) | 85 कि० ग्रा० |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | काला |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 24 दिसंबर 1924 |
जन्मस्थान | लाहौर, पंजाब, तब भारत (अब पंजाब, पाकिस्तान में) |
मृत्यु तिथि | 31 जुलाई 1980 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
मृत्यु कारण | हृदयाघात (दिल का दौरा) |
नागरिकता | भारत |
हस्ताक्षर | ![]() |
पहला गाना | अजी दिल हो काबू में (गाँव की गोरी) 1945![]() |
परिवार | पिता - हाजी अली मोहम्मद माता- अल्लाह राखी भाई- मोहम्मद सफ़ी, मोहम्मद दीन, मोहम्मद इस्माइल, मोहम्मद इब्राहिम, मोहम्मद सिद्दीकी बहन- चिराग बीबी, रेशमा बीबी |
धर्म | इस्लाम |
शौक | पतंग उड़ाना,बैडमिंटन खेलना |
पता | रफ़ी हवेली, मुंबई, महाराष्ट्र (भारत)![]() |
उनकी पसंद
पसंदीदा अभिनेता | “दिलीप कुमार,” “राज कपूर,” “ऋषि कपूर,” और किशोर कुमार |
पसंदीदा अभिनेत्री | “नरगिस,” “मधुबाला,” “रेखा,” और साधना |
पसंदीदा गायक | “किशोर कुमार,” के एल सहगल |
पसंदीदा गायिका | लता मंगेशकर |
पसंदीदा फिल्म | “मुग़ल-ऐ-आज़म,” “आराधना, गाइड” |
पसंदीदा संगीतकार | “के एल सहगल,” “मन्ना डे” |
पसंदीदा रंग | “भूरा,” “सफ़ेद,” और लाल |
सम्बन्ध
प्रेमिका | बिल्किस बानो |
पत्निया | बशीरा बीबी (प्रथम पत्नी) बिल्किस बानो (दूसरी पत्नी) |
बच्चे | बेटा- सईद (पहली पत्नी से) खालिद, हामिद, शाहिद (दूसरी पत्नी से) बेटी- परवीन, यास्मीन, नाशरीन (दूसरी पत्नी से) ![]() |
संपत्ति विवरण
लगभग संपत्ति | 190 करोड़ भारतीय रुपए |
कार संग्रह | इम्पाला कार, फिएट पद्मिनी |
आखरी गीत | तू कही आस पास है दोस्त (1981) |
कुछ रोचक जानकारियाँ
रफी को शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। |
उनके भाई की नाई की दुकान थी. और, रफी का काफी वक्त वहीं गुजरता था। |
रफी के परिवार का संगीत से कोई नाता नहीं था. रफी जब सात साल के थे, तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले फकीर का पीछा किया करते थे, जो वहां से गाते हुए गुजरता था। |
वो उस फकीर की आवाज की नकल करते थे, और जब रफी गाने लगे तो लोगों को उनकी आवाज पसंद आने लगी. इससे रफी आसपास के इलाके में काफी प्रसिद्ध हो गए. संगीत के प्रति रुचि देखकर उनके बड़े भाई ने उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत सीखने भेजा। |
एक स्टेज शो के दौरान बिजली जाने की वजह से उस जमाने के जाने माने गायक केएल सहगल ने गाना गाने से मना कर दिया, तो वहां मौजूद मात्र 13 साल के रफी ने स्टेज संभाला और गाना शुरू कर दिया और यहीं से मोहम्मद रफी की किस्मत खुल गयी। |
मोहम्मद रफ़ी धूम्रपान, और मद्यपान नहीं करते थे। |
इंडस्ट्री में शुरुआत
उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू, और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली। |
मोहम्मद रफ़ी के माता पिता के 6 पुत्र थे, और रफ़ी उनके दूसरे पुत्र थे। |
उनको पहली बार वर्ष 1941 में ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर स्टेशन द्वारा गाने के लिए आमंत्रित किया गया। |
उसी वर्ष 1941 में, उन्हें पंजाबी फिल्म “गुल बलोच” (1944 में रिलीज़) में ज़ीनत बेगम के साथ युगल में “सोनिये नी, हीरिये ने” पार्श्वगायक के रूप में लाहौर में गाने का मौका मिला। |
हिंदी फिल्म ‘गांव की गोरी’ ( 1945 में रिलीज़) में “अजी दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी” से हिंदी फिल्मो में गाया और, अपने सुनहरे करियर की शुरुआत की। |
मोहम्मद रफ़ी ने अनगिनत खूबसूरत गाने गाये, लेकिन उनका खुद का मनपसंद गाना “ओ दुनिया के रखवाले “, फिल्म “बैजू बावरा”, से है। |
शुरुआत में मुंबई में वह काफी भीड़-भाड़ वाले इलाके भिंडी बाजार में दस फुट के कमरे में हामिद साहब के साथ किराए पर रहते थे। |
उन्होंने के.एल. सहगल को आदर्श माना, जिससे जी. एम. दुर्रानी भी काफी प्रभावित हुए, और अपने करियर के शुरुआती दौर में, उन्होंने अक्सर उनकी गायन की शैली का अनुसरण किया। |
वर्ष 1977 में, उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किया, वर्ष 1967 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और सर्वश्रेष्ठ प्लेबैक संगीतकार के लिए छह फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। |
“ओ दुनिया के रखवाले” गाने को गाते समय रफी के गले से खून तक आ गया था, कि इस गाने के लिए मोहम्मद रफी ने 15 दिन तक रियाज किया था और रिकॉर्डिंग के बाद उनकी आवाज इस हद तक टूट गई थी कि कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि रफी शायद कभी अपनी आवाज वापस नहीं पा सकेंगे। |