गायक, अभिनेता, निर्माता, संगीत निर्देशक, संगीत लेखक
जन्म
4 अगस्त 1929, खंडवा, मध्य प्रदेश (भारत)
हस्ताक्षर
किशोर कुमार द्वारा 17/10/1982 का ऑटोग्राफ
मृत्यु
13 अक्टूबर 1987 बम्बई (अब मुंबई) भारत
कारण
दिल का दौरा
शिक्षा
स्नातक (क्रिस्चियन कॉलेज) इंदौर
माता-पिता
पिता कुंजलाल गांगुली, माता गौरी देवी
भाई-बहन
अशोक कुमार, अनूप कुमार(दोनों अभिनेता) बहन सती देवी
पत्निया
पत्नी-1 रूमा घोष (1950-1958) तलाक पत्नी-2 मधुबाला (1960-1969) मधुबाला की मृत्यु पत्नी-3 योगिता बाली (1976-1978) तलाक पत्नी-4 लीना चंदावरकर (1980-1987) किशोर कुमार की मृत्यु
बच्चे
बच्चे अमित कुमार (रुमा घोष), सुमित कुमार (लीना चंदावरकर)
पसंदीदा गायक
मोहम्मद रफ़ी, के एल सहगल
पसंदीदा गायिका
लता मंगेशकर, आशा भोसले
पसंदीदा नायक
अशोक कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, डैनी काये (हॉलीवुड)
पसंदीदा नायिका
मधुबाला
पसंदीदा संगीतकार
एस डी बर्मन आर डी बर्मन
शौक
उपन्यास पड़ना, कार चलाना, टेबल टैनिस, फुटबॉल खेलना
किशोर कुमार 1970 से 1980 के दशक में 35000 भारतीय रुपए प्रति गाने के लिए लेते थे।
1980 के दशक में उनकी कुल पूंजी 60 करोड़ के करीब हो गयी थी, जो किसी भी स्थापित कलाकार से कही ज्यादा थी।
गायकी के शुरूआती दौर में
किशोर कुमार अपने भाइयो और बहन में सबसे छोटे थे वो अभी बच्चे ही थे जब अशोक कुमार एक प्रसिद्ध अभिनेता बन चुके थे और अशोक कुमार की मदद से अनूप कुमार भी अभिनय की दुनिया में कदम रख चुके थे।
अपने भाइयो के साथ रह कर उनको भी संगीत और में रूचि हो गयी।
वो अक्सर अशोक कुमार के साथ उसकी फिल्मो के सेट पर जाया करते थे, और वही पर उनकी मुलाकात गुरुदत्त जी से हुई, तब गुरु दत्त ने उनकी प्रतिभा को पहचाना।
आगे चल कर किशोर बॉलीवुड के मशहूर गीतकार के.एल सहगल के बहुत बड़े प्रसंशक बन गए, और उनका अनुसरण करने लगे।
अभिनय की शुरुआत
उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित अपनी पहली फिल्म “मुसाफिर” 1957 में अभिनय किया।
इसके बाद उनको कुछ और फिल्मों के प्रस्ताव आये पर वो फिल्मो को लेकर गंभीर नहीं थे।
1951 में वो पहली बार फिल्म आंदोलन में नायक के रूप में दिखे।
जब एक बार एस.डी बर्मन अशोक कुमार के घर गए, तब उन्होंने किशोर को सुन कर काफी प्रभवित हुए।
1958 में (चलती का नाम गाडी) उनकी खुद की निर्देशित फिल्म थी जिसमे तीनो भाई और मधुबाला एक साथ मुख्य भूमिकाओं में थे।
एक अभिनेता के तौर पर “चलती का नाम गाडी (1958)” “हाफ टिकट (1962)” “पड़ोसन (1968)” जैसी शानदार फिल्मो में अभिनय किया।
निर्देशक सलिल चौधरी ने 1954 में फिल्म “नौकरी” के लिए किशोर कुमार को संगीत के पर्याप्त प्रशिक्षण के आभाव में खारिज कर दिया था।
परन्तु उनकी आवाज़ सुन कर “छोटा सा घर है” गाने का मौका दिया जिसको हेमंत कुमार ने पहले ही गाया था।
सलिल चौधरी ने बाद में “हाफ टिकट” में एक युगल गीत गाने को दिया, और किशोर कुमार ने ये गाना दोनों आवाज़ों में अकेले गाए जो आज भी मशहूर है।
संगीत में उनकी विविधताएं
आर डी बर्मन के साथ में टैक्सी ड्राइवर (1954), फंटूश (1956), पेइंग गेस्ट (1957), गाइड (1965) आदि कई शानदार फिल्मो में काम किया।
किशोर कुमार ही यॉडलिंग को सर्वप्रथम भारत में लाये थे आज तक कोई भी उनके जैसी यॉडलिंग नहीं कर पाया है।
‘मैं हू झुम झुमरू” गीत जो कि खुद किशोर ने ही लिखा था उसमे यॉडलिंग का बेहतरीन इस्तेमाल किया, ये गाना आज भी लोगो अपनी ओर आकर्षित करता हैं।
किशोर कुमार ने किसी भी तरह का संगीत प्रशिक्षण नहीं लिया था, फिर भी किशोर ऐसे सुर भी लगा लेते थे, जो आज किसी भी गायक के लिए हरगिज़ आसान नहीं है
किशोर कुमार की आवाज़ सभी नायको पर सटीक बैठती थी, और वो किसी भी गाने के हिसाब से अपनी आवाज़ को बदलने में सक्षम थे।
• फिल्म मिली (1975) का एक गीत “बड़ी सूनी सूनी हैं” जो किशोर कुमार का खुद का सबसे पसंदीदा गीत है।
किशोर कुमार के विवाद
1980 में किशोर कुमार “ममता की छाओ में” फिल्म बना रहे थे, तब उन्होंने अमिताभ से एक मेहमान भूमिका निभाने का आग्रह किया,
लेकिन अमिताभ ने इसके लिए स्पष्ट मना कर दिया, फलस्वरूप अगले 7 साल तक उन्होंने अमिताभ के लिए कोई भी गीत नहीं गाया।
7 साल बाद अमिताभ बच्चन ने किशोर कुमार से सार्वजानिक तौर से माफ़ी मांग कर इस झगडे को ख़त्म किया।
किशोर कुमार ने इमरजेंसी के समय मंच पर गाने के सरकारी न्योते को ठुकरा दिया था।
जिस से तिलमिला के सरकार ने उनको आकाशवाणी से 1 साल तक प्रतिबंधित कर दिया।
पूर्व पत्नी योगिता बाली से मिथुन चक्रबर्ती की शादी होने के बाद उन्होंने मिथुन को भी अपनी आवाज़ देना बंद कर दिया।
लेकिन बाद में उन्होंने मिथुन को अपनी आवाज़ दी, और वो किशोर का आखरी गीत था।
इस गाने के अगले दिन 13 /10 /1987 किशोर कुमार की मृत्यु हो गयी।
विडम्बना देखिये की जिस दिन उनकी मृत्यु हुई, उस दिन उनके बड़े भाई अशोक कुमार का जन्मदिन था।
फिल्म “वक़्त की आवाज़” का गीत “गुरु गुरु” उनका आखिरी गीत था।
अपने ग्रहनगर खंडवा के प्रति प्रेम
किशोर कुमार का खंडवा से शुरू से ही बेहद लगाव था, वो अक्सर यही कहते थे….
इस मुर्ख और मतलबी शहर में कौन रहना चाहता है जहा हर कोई अपने मतलब से दूसरो का शोषण करना चाहता है, आप खुद बताओ कि यहाँ कोई भी विश्वास के काबिल है मुझे इस चूहे दौड़ से निकलकर अपने मूल खंडवा जो कि मेरे पूर्वजो की भूमि पर जाना है, इस बदसूरत शहर में कौन मरना चाहता है।